Tuesday, May 21, 2013

आगे बढ़ेगी एनडीए, पर सरकार कैसे बनेगी?

अभी देश में आम चुनाव हो गए तो क्या होगा? क्या यूपीए दिल्ली के ताज पर काबिज होने की हैट-ट्रिक बनाएगी? या फिर बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए की 10 साल बाद वापसी होगी? एबीपी न्यूज और नीलसन के सर्वे के मुताबिक, जहां यूपीए के पैरों तले जमीन खिसक जाएगी, वहीं एनडीए के पक्ष में भी लहर नहीं दिख रही है। एनडीए लोकसभा में जादुई आंकड़े से कुछ फासले पर ठहर जाएगी। इस सर्वे के मुताबिक, 543 सीटों में से एनडीए को 206 सीटें और सत्ताधारी यूपीए को 136 सीटें मिलेंगी। वोट शेयर की बात करें तो बीजेपी को सबसे अधिक 31% और कांग्रेस को मात्र 20% वोट मिलेंगे। अगर गठबंधनों की बात करें तो 39% लोगों ने कहा कि वे एनडीए के लिए वोट करेंगे। यूपीए के मामले में यह आंकड़ा मात्र 22% था।


2009 में हुए पिछले आम चुनाव में कांग्रेस को अकेले 206 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि बीजेपी की झोली में महज 116 सीटें आई थीं।

सर्वे के मुताबिक, गैर-यूपीए और गैर-एनडीए पार्टियों के साथ निर्दलीयों को 167 सीटें मिलेंगी। पिछली बार हाशिए पर पहुंचने वालीं लेफ्ट पार्टियों के लिए इस बार भी कोई बहुत अच्छी खबर नहीं है। अभी चुनाव हुए तो उन्हें 34 सीटें ही मिलेंगी, जबकि पिछले लोकसभा में इन पार्टियों ने 24 सीटें जीती थीं। लेफ्ट पार्टियां साल 2009 में बंगाल की 42 में से 16 सीटों पर जीतने में सफल रही थीं, इस बार यहां से उसके 18 सांसद लोकसभा पहुंच सकते हैं। तृणमूल को थोड़ा नुकसान होगा और उसके 14 उम्मीदवार विजयी होंगे।
जाहिर है, परिणाम सर्वे के मुताबिक रहे तो दोनों बड़े गठजोड़ों अपने बूते सरकार नहीं बना पाएंगे, ऐसे में गैर-यूपीए और गैर-एनडीए पार्टियां सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाएंगी। इस सर्वे के आधार पर तीसरे मोर्चे की सरकार की आस रखने वाले नेता भी दिमागी कसरत में लगे हैं। ऐसे में दो संभावनाए बनती हैं। पहली, बीजेपी 66 सासंदों का जुगाड़ करके एनडीए की सरकार बना ले या फिर कांग्रेस और तीसरा मोर्चा मिलकर 'बाहर-भीतर' के फॉर्म्युले से सरकार बना ले। हालांकि, इन दोनों संभावनाओं में 'किंतु-परंतु' के काफी पेच हैं।

पहली संभावन: एनडीए की सरकार
206 सीटों के साथ एनडीए सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उभरकर आएगा, लेकिन सरकार बनाने के लिए 66 सीटों का फासला कैसे तय करेगी? अभी बीजेपी के साथ जेडी(यू), अकाली दल और शिवसेना हैं। उसकी उम्मीदें मोटे तौर पर गैर-यूपीए नेताओँ मायावती (बीएसपी) , ममता बनर्जी (तृणमूल कांग्रेस), जयललिता (एआईएडीएमके), नवीन पटनायाक (बीजेडी), असम गण परिषद, राज ठाकरे (एमएनएस ) ओमप्रकाश चौटाला (आईएनएलडी), जगनमोहन रेड्डी (वाईएसआर कांग्रेस) और चंद्रशेखर राव (टीएसआर) पर टिकी हैं।

समीकरण: सैद्धांतिक तौर पर जयललिता, चौटाला और असम गण परिषद को बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने में भी कोई मुश्किल नहीं है। ऐसे में देखना है कि क्या बीजेपी चुनावों से पहले इन नेताओं को अपने साथ जोड़कर एनडीए का कुनबा बढ़ा पाती है या नहीं। ममता, मायावती, चंद्रशेखर राव और पटनायक अतीत में बीजेपी के साथ रह चुके हैं, लेकिन अल्पसंख्यक वोटों की वजह से वे चुनाव से पहले उसके साथ नहीं दिखना चाहते हैं। ऐसे में एनडीए को बहुमत के करीब देख ये लोग सरकार को बाहर या भीतर से समर्थन दे सकते हैं।

मुश्किल: कुनबा बढ़ाने की कवायद में बड़ी बाधा नरेंद्र मोदी को पीएम के तौर पर प्रोजेक्ट करना हो सकता है। पिछले कुछ महीनों में जिस तरह से पार्टी के भीतर उनका कद और बाहर उनकी लोकप्रियता बढ़ी है, उससे इस बात की संभावना प्रबल है कि मोदी ही पार्टी के पीएम के उम्मीदवार होंगे। अगर ऐसा होता है तो नीतीश का एनडीए से बाहर जाना तय है। इस स्थिति में ममता और माया चनाव के बाद भी शायद ही एनडीए के साथ आएं। हालांकि, मोदी के कट्टर समर्थक माने जाने वाले राज ठाकरे और जयललिता ताल ठोककर एनडीए के साथ आ सकते हैं।

दूसरी संभावना: कांग्रेस समर्थित सरकार

समीकरण: कांग्रेस 140 से कम सीटों पर सिमट जाने की स्थिति में शायद ही सरकार बनाने की कोशिश करेगी, लेकिन वह बीजेपी को रोकने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाएगी। ऐसे में 1996 जैसी स्थित बन सकती है, कांग्रेस की मदद से तीसरे मोर्चे की सरकार। हांलाकि, मायावती और मुलायम एक साथ नहीं आएंगे लेकिन इसकी क्षतिपूर्ति लेफ्ट पार्टियों के समर्थन से की जा सकती है।

मुश्किल: मुलायम, मायावती, ममता, जयललिता, नीतीश (अगर बीजेपी से अलग होते हैं) सारे के सारे क्षत्रप प्रधानमंत्री बनने का मंसूबा पाले बैठे हैं। कांग्रेस अगर पीएम के नाम पर वीटो करके किसी एक नाम पर सहमति बना भी ले तो भी किसी भी सूरत में मायावती और मुलायम एक साथ नहीं आ सकते हैं। फिर इतिहास गवाह है कि कांग्रेस समर्थित कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई है।

(source navbharattimes.)

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