Monday, April 9, 2018

सोशल मीडिया की कैद में बचपन


बचपन, हालांकि अब सोशल मीडिया के बाद बचपन रहा नहीं। आपत्तिजनक वीडियो, कमेंट औऱ ट्रोलिंग की परिभाषा आज बच्चे, बड़ों से कहीं बेहतर ढंग से जानते हैं। आपने एक विज्ञापन देखा होगा, आजकल काफी पसंद किया जा रहा है। एक ऑनलाइन ट्यूटोरियल ब्रांड BYJU का यू-ट्यूब चैनल सब्सक्राइब करने के लिए आता है। ध्यान से देखिए, इसकी थीम भी पैरेंट्स में सोशल मीडिया का डर ही है। दरअसल, ये आज हर अभिभावक का डर है।
                                   डिटिजल टेक्नालाजी  के बढते दायरों ने सिर्फ युवाओं को प्रभावित किया है बल्कि बचपन भी अब इस दायरे से अछूता नहीं रह गया है । डिजिटल तकनीकी ने एक तरफ जहां आधारभूत शिक्षा और उसके विकास के नये रास्ते खोलें है उनके लिए सीखने को बंद कमरे में एक असीमित स्थान है खासकर उनके खेल के नये मैदान तैयार किए गये हैं...ICT और सोशल मीडिया ने बच्चों को एक्टिव भागदारी उनके इंपावरमेंट के लिए नया रास्ता तो खोला ही है तो वहीं दूसरी तरफ उनके लिए नये सामाजिक खतरों का दरवाजा भी खोला है कई मामलो पर सोशल मीडिया के बढ़ते बेहिसाब अनियंतत्रित उपयोग ने उन्हें समय से पहले ही जवान और महत्वाकांक्षी बना दिया है। इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले देशों में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है, भारत में कुल 134 मिलियन बच्चे मोबाइल का उपयोग करते हैं ,4G के आने के बाद, स्मार्टफोन पर हाई स्पीड में इंटरनैट चलने के साथ ही ब्रांडबैंड के घरों तक पहुंचने से देश के शहरी क्षेत्रों के 99 फीसदी बच्चे इंटरनैट का उपयोग करते हैं और 6 से 18 वर्ष आयु वर्ग के 83.5 प्रतिशत बच्चे सोशल मीडिया पर भी रोजाना  सक्रिय हैं। दूरसंचार सेवाएं देने वाली कंपनी टैलीनॉर इंडिया की वैबवाइका सर्वेक्षण में पाया गया कि अधिकांश बच्चे अपने सोशल अकाउंटों के लिए कमजोर पासवर्ड का उपयोग करते हैं जिससे वे हैकिंग के भी शिकार होते हैं। देश के 13 शहरों के 2,700 बच्चों ने इस सर्वेक्षण में भाग लिया है। इसमें कहा गया है कि शहरों में 98.8 प्रतिशत बच्चे इंटरनैट का इस्तेमाल करते हैं और 54.6 प्रतिशत बच्चे कमजोर पासवर्ड का इस्तेमाल करते हैं यानी ऐसा पासवर्ड जिसमें केवल ऐल्फाबेट अथवा नंबर होते हैं और वह भी 8 से कम। इसके अतिरिक्त 54.82 प्रतिशत बच्चे अपना पासवर्ड अपने दोस्तों, परिवार या संबंधियों के साथ साझा करते हैं और इस प्रकार अपनी डिजिटल सुरक्षा को जोखिम में डालते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 6 से 18 वर्ष के 83.5 प्रतिशत बच्चे सोशल मीडिया के इस्तेमाल की आदी हो चुके हैं, इनमें 35 प्रतिशत से अधिक बच्चों के  अकाऊंट हैक हुए हैं,जबकि 15.74 प्रतिशत बच्चों को सोशल मीडिया पर ऐसे संदेश प्राप्त हुए हैं जो उनकी आयु और समझ के हिसाब से अनुचित हैं। यानि कि उन मैसेजस का कन्टेंट वयस्क या एडेल्ट था। हालात सिर्फ यह नहीं कि इन सबके लिए सिर्फ बच्चे की जिम्मेदार है बढती शिक्षा प्रतिदंव्दिता के चलते पैरेंट भी बच्चों को पर्सनल कंप्यूटर सिस्टम लाकर तो दे देते हैं लेकिन उसके सुरक्षित इस्तेमाल के लिए उनकी जागरूकता अभी कम है। माता पिता की फेसबुक जैसी सोशल साइट्स पर लगातार सक्रियता ने भी बच्चों के मन में इस और आकर्षण पैदा किया है। अब 8-9 साल के बच्चों की भी प्रोफाइल सोशल मीडिया पर दिखाई देती है। इतनी कम उमर में सोशल मीडिया पर बच्चों की बढ़ती सक्रियता के बाद के तो चैन्नई के एक स्कूल में जून 2016 में बायकदा अपने एडमीशन फार्म पर इस बात का उल्लेख किया कि जिन बच्चों का सोशल मीडिया में अकाउंट होगा उन्हें स्कूल में प्रवेश नहीं दिया जायेगा। सोशल मीडिया का बच्चों पर प्रभाव जानने के लिए एक शोध में भी पाया गया है कि 12 से 15 साल के हर तीन में से एक से ज़्यादा बच्चों की नींद हफ़्ते में कम से कम एक बार टूट जाती है. शोध के मुताबिक बच्चों की नींद टूटने की वजह सोशल मीडिया का बेजा इस्तेमाल है,हर पांच बच्चों में से एक से ज़्यादा ने रात में उठ कर सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया और इसके चलते अगले दिन स्कूल में उन पर थकान हावी रही.(  कार्डिफ़ विश्वविद्यालय शोध)। इतनी कम उमर में सोशल मीडिया में एक्टिव रहने वाले इन बच्चों के बीच एक और सबसे बडी समस्या है जिसे साधारण शब्दों में कहा जाये इन्फिरियटी काम्पलेक्स इसे कुछ इस तरह समझा जाये कि यदि एक बच्चा अपने किसी साथी को उस जगह की पिक्स अपलोड करते हुए देखता है जहां वो जाना चाहता है लेकिन नहीं जा सका तो उसे काफी निराशा होती है उस पिक्स  अथवा प्रोफाइल पर मिलने वाले लाइक्स और कमेंट्स की संख्या उसकी अपनी पिक्स पर लाइक्स और कमेंट्स से ज्यादा होने पर उसका  आत्मविश्वास कमजोर पड़ने लगता है. क्योंकि वो इन लाइक्स और कमेंट्स को अपनी शख्सियत की अहमियत से जोड़कर देखने लगता है सोशल नेटवर्किंग पर एक्टिव ये बच्चे अपनी असल जिंदगी से कट रहे हैं। यहां इन्हें इस बात को माता पिता या अविभावक को समझाना चाहिए कि वर्चुअल दुनिया में मिली इस सोहरत का वास्तिवक दुनिया से कोई लेना देना नही हैं। (dwivedi, 2016) हालांकि फेसबुक ने खाता खोलने की न्यूनतम आयु सीमा 16 रखी है फिर फिर 65 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे इसे इग्नोर करते हैं। भारत में कुल इंटरनेट उपयोग करने वाले लोगो की संख्या जून 2017 में 450 मिलियन से भी ज्यादा होगी IMAI के अनुसार भारत में इंटरनेट उपयोगा करने वालों की संख्या में पिछले साल दिसंबर 2016 की तुलना में 4-8% की बढोत्तरी हुई है।और इसमें 66 प्रतिशत से ज्यादा  लोग सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। इंटरनेट यूजर की इन संख्या में से 28 मिलियन यूजर स्कूल जाने वाले बच्चे हैं  और इनकी आयु भी फेसबुक में अकांउट ओपन करने के लिए वैध नहीं होती।इसका एक बुरा पहलु यह भी की आजकल की व्यस्तता भरी जीवन शैली में बच्चों को बिजी रखने के कम उमर के इन बच्चों को सोशल मीडिया में एकाउंट खुद इनके माता पिता ही कर देते हैं एसोसिएट चैंबर ऑफ कॉमर्श (एसोचेम) की वर्ष 2014 की देश के कई मेट्रो शहरों में कराए गए एस सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार 8 से 13 वर्ष की उम्र के 73 फीसदी बच्चे फेसबुक जैसी सोशल साइटों से जुड़े हुए हैं, जबकि उन्हें इसकी इजाज़त नहीं है। शोधकर्ताओं के अनुसार इन बच्चों के 82 फीसदी माता-पिताओं ने बच्चों को खुद का समय देने के बजाय उन्हें व्यस्त रखने के लिए खुद ही बच्चों के नाम से फेसबुक अकाउंट्स बनाए थे। सोशल मीडिया का बढ़ता दायरा बच्चों को अपनी ओर खींच रहा है, इसके लिए कहीं न कहीं हम ही जिम्मेदार माने जाएंगे। हमने उन्हें डिजिटल प्लेटफार्म तो दे दिया, लेकिन डिजिटल लिट्रेसी देना भूल गए। नतीजतन इसका फायदा दूसरे अपराधी उठा रहे हैं। हमने कोशिश भी नहीं की कि बच्चों को बताएं कि डिजिटल प्लेटफार्म पर उन्हें किन खतरों से बचना है और उनसे निपटना कैसे हैं। बच्चे सर्चिंग में कहां पहुंच जाते हैं, कहां क्लिक कर देते हैं और कैसे अपराध या अपराधियों के चंगुल में फंस  जाते हैं, हमें पता ही नहीं चलता। हम नज़र रखने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन ये नहीं सोचते कि इसकी जरूरत क्यों पड़ी। एक कोशिश अभिभावकों को सरकार से मदद के लिए भी करनी चाहिए, ताकि सोशल मीडिया के इस्तेमाल को नियंत्रित किया जा सके। आज कोई भी अपनी पहचान बताए बिना सोशल मीडिया पर अकाउंट क्रिएट कर सकता है, यूट्यूब पर चैनल बना सकता है, इसके लिए दिशानिर्देश तय किए जाने की जरूरत है। कम से कम 'आधार' को ही 'आधार' मान लिया जाए, तो काफी मदद मिल जाएगी।
                    इंटरनेट सिक्योरिटी के लिए भी सोशल मीडिया यूजर्स में अवेयरनेस की कमी घातक साबित हो रही है। हम सोशल मीडिया पर वायरल कंटेंट पर बहस करते हैं, कमेंट, लाइक व शेयरिंग करते हैं, लेकिन बच्चों को इनसे कैसे दूर रखा जाए, ये नहीं देखते। ये मांग भी उठनी चाहिए कि सोशल मीडिया प्रोफाइल बनाने के लिए यूजर्स को एक निश्चित आयुसीमा पूरा करने, और इस जैसी दूसरी अनिवार्यताओं को पूरा करना होगा। अगर ऐसा होता है तो काफी हद तक बच्चों के बचपन पर असर पड़ना कम हो जाएगा।

(सर्वाधिकार सुरक्षित)

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