Friday, October 19, 2018

क्योंकि ये कहानी है वादियों में रहने वाले हमारे ‘हम-वतनों’ की।



                                              हिन्दी साहित्य के उपन्यासों में ऐसे उपन्यास बेहद कम हैं जिनमें साहित्य को ऐतिहासिकता की प्रमाणिकता में परोसा गया हो। रिफ्यूजी कैंप एक ऐसा ही साहित्यिक दस्तावेज है जिसे उस हर भारतीय को पढ़ना चाहिए जिसने कश्मीर की वादियों को समाचार-पत्रों की हेडलाइन्स या ख़बरिया चैनल्स की सुर्खियों के माध्यम से ही देखा, सुना और जाना हो। रिफ्यूजी कैंप सिर्फ अभिमन्यु की कहानी नहीं है, यह घाटी में रहने वाले उस हर शख़्स की कहानी है जिसने काश्मीर की ख़ूबसूरत वादियों में नफ़रत की धुंध को फैलते देखा है। और इसे महज़ कहानी क्यूं कहा जाए, रिफ्यूजी कैंप कश्मीर की बिखर और बिसर चुकी विरासत और संस्कृति से रूबरू कराता एक जीता-जागता दस्तावेज है।
          एक सांस्कृतिक विरासत का अनुभव रखने वाला व्यक्ति जब कोई साहित्य लिखता है तो वह सिर्फ साहित्य नहीं होता आने वाले इतिहास के लिए एक दस्तावेज़ भी होता है आशीष कौल ने वही साबित किया है। रिफ्यूजी कैंप किसी टूटे दिल की दास्तां या दो बिछडे दिलों की महज़ एक कहानी भर  नहीं है, यह जज्बातों का वो  समंदर है जो अपनी विरासत, अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता और सबसे बढ़कर अपनी माटी से बिझड़ने और उससे मिलने की तड़प का सूनापन लिए ज़ह्न के किनारों से टकराता रहता है।
            कोई भी व्यक्ति जब अपनी जन्मभूमि से कहीं और माइग्रेट करता है तो वो अपने साथ अपनी संस्कृति को विरासत के तौर पर ले जाता है, और इसे ही वह अपनी आने  वाली पीढ़ियों तक पहुंचाता भी है। लेकिन कश्मीर से जबरदस्ती विस्थापित  कर दिए गये कश्मीरी पंडितों की संस्कृति तो वहीं रह गई, अपने ही देश में रिफ्यूजी कहलाने वाले इन हिन्दुस्तानियों के सामने अपने आनी वाली पीढ़ियों को अपनी संस्कृति को विरासत के रूप में सौंपने का यक्ष प्रश्न कितना कंटीला रहा होगा इसे रिफ्यूजी कैंप पढ़कर समझा जा  सकता है। ये वो लोग थे जिनके सिर्फ घर नहीं छूटे, पीछे छूट गया था किसी शहनाज़ की थाली में अभिमन्यु के लिए मुख़्तार के हाथों से तोड़ी गई रोटी का टुकडा, किसी आरती की पूजा की थाली में मुख़्तार के नाम का चंदन का टीका। ये वो लोग थे जिन्होंने  माज़िद और इस्माइल चाचा की नमाज़ के लिए जमीनें साफ की थीं तो अभय प्रताप और दीनानाथ को पूजा से पहले उनके  मंदिरों की सीढियां साफ मिली थी। ये वो दर्द है जिसे भरने  के लिए रोशनी को अंधेरे का सफ़र तय करना पडा, ये वो दर्द है जिसे गुनगुनाने के लिए जसप्रीत को कई रातें जागनी पडी।
             यह उस हर नौजवान की कहानी है जिसने केसर की ख़ूश्बू में गूंजती कश्मीर की घाटी  कोवरव रोलिव,गोलिब या चेलिवके नारों में बदलते देखा, जिसने वादी के कई ख़ुशनुमा मौसमों को दहला देने वाली काली रातों में बर्फ की चादरों को लाल होते देखा। यह कहानी उस हर आदमी की जिसे वादियों ने अपने औलाद की तरह अपने दामन में समेट रखा था, यह दर्द है उस हर टूटे दिल का, जो अपनी सर-ज़मी से निकलते ही औरों के लिए रजिस्टर में दर्ज महज़ एक आंकडा हो गया। यह कहानी है उस इस्लाम की जिसे पाकिस्तान में कहवे की गर्म चुस्कियों के साथ मौसिकी में पेश किया जाता है और वादी में बंदूक से निकलने वाली गोलियों की शक्ल में। ये कहानी है उस इस्लाम की जिसने जेहाद-अल-अकबर और जेहाद-अल-असगर के बीच का फर्क समझे बिना ख़ुद को शरणार्थी में बदलकर एक लंबे और कभी ना ख़त्म होने वाले सफ़र में छोड़ दिया।
                       रिफ्यूजी कैंप सरकार के चेहरे पर एक करारा तमाचा भी है कि कैसे एक भारतीय अपने ही देश में रिफ्यूजी हो गया। उसके चेहरे से उसकी कश्मीरियत की पहचान मिटा दी गई, कैसे उसके आंखों के नीले-कत्थई रंग के रौनक की जगह, दहशत से भरे सूर्ख लाल रंग ने ले ली। ये कहानी है दर्द से उपजे उस हर गीत का जिसे गुनगुनाने का लहजा हम सबके दिल में कहीं टीस बनकर सिमट कर रह गया है,  ये कहानी है, मेरी भी और आपकी भी, क्योंकि ये कहानी है वादियों में रहने वाले हमारे हम-वतनों की।

KESHAV PATEL (BEST SELLER AUTHOR)
Book Review “Refugee Camp” BY Ashish Kaul




                 

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