मुलायम सिंह ने कहा कि वो तीसरा मोर्चा बनाएंगें लेकिन चुनाव के बाद...उत्तर प्रदेश विधानसभा में रिकार्ड तोड़ मतों से जीतकर सरकार बनाने वाले मुलायम सिंह का हौसला इस समय सातवें आसमान में है....उनका दिल में कहीं ना कहीं यह भी बैठ गया है कि सपा की ये जीत उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सरकार बनाने या तुरूप के इक्के की तरह पेश कर सकती है...मुलायम सिहं भले ही अपने सारे पत्ते अभी नहीं खोले हैं पर उत्तर प्रदेश में जीत के बाद और अपनी संख्याबल के आधार पर मनमाफिक चलने के संकेत जरूर दे दिया है..मुलायम ने समान विचार वाली पार्टियों के साथ बेहतर तालमेल बनाने का भी संकेत दिया है।
कोलकाता में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दूसरे दिन मुलायम ने ममता बनर्जी की नाराजगी दूर करने की भी कोशिश की। यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ममता से मुलाकात की। गौरतलब है कि राष्ट्रपति चुनाव से पहले ममता बनर्जी का साथ छोड़कर मुलायम कांग्रेस के पाले में चले गए थे। इससे ममता नाराज थीं। उन्होंने कहा कि ममता मेरी छोटी बहन की तरह हैं और उनसे कभी कड़वाहट नहीं रही। केंद्र में सत्ताधारी कांग्रेस और बीजेपी को दुविधाग्रस्त व असफल करार देते हुए मुलायम ने कहा कि समाजवादी पार्टी पर जनता को यकीन है। अखिलेश यादव हाल ही में मध्य प्रदेश का दौरा करने के बहाने यहां भी अपनी जमीन तलाश गये हैं.....दरअसल, उत्तर प्रदेश पर अपना जादू दिखाने के बाद उमर दराज हो चुके मुल्ला मुलायम सिंह यादव की नजरें दिल्ली के तख्त पर जा टिकी हैं।उत्तर प्रदेश के बाद अब मुलायम तीसरा मोर्चा के जरिए खुद प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं।पर सवाल है कि क्या अकेले उप्र की जीत के आधार पर मुलायम 7 रेस कोर्स का सपना पूरा हो सकता है...मान भी लिया जाये कि उप्र में लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटे एसपी जीत भी जाये तब भी क्या अकेले उप्र की लोकसभा सीटों के आधार पर उनकी लंबी कूद दिल्ली तक हो पायेगी....गठबंधन और क्षेत्रीय उभार की राजनीति में इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि 2014 के आम चुनावों के परिणाम कुछ ऐसी परिस्थितियां सामने लाएं कि तमाम क्षेत्रीय दल मिलकर एक बार फिर साझा प्रधानमंत्री चुनें और ऐसे प्रधानमंत्री की मांग उठे जो गैर भाजपाई, गैर कांग्रेसी हो. ऐसा नहीं कि यह पहली बार होगा पर तब स्वार्थ, कथित सिद्धांत और सियासी जोड़ जुगत का जो माहौल बनेगा वह पहले से बहुत अलग होगा.1996 में कांग्रेस के नेताओं का जब पीवी नरसिम्हा राव से मोहभंग का लाभ लेते हुए शरद पवार ने स्वर्गीय चंद्रशेखर के साथ गैर कांग्रेसी नेताओं, समाजवादियों, लोहियावादियों और कतिपय वामपंथियों को लेकर एक विकल्प बनाने का प्रयास किया. इसमें मुलायम सिंह की केंद्रीय भूमिका थी. बात यह तय हुई कि नए विकल्प में चंद्रशेखर नेता होगें, मुलायम सिंह और शरद पवार दूसरे नंबर की जिम्मेदारी संभालेंगे. इस विकल्प के बिखरने से पहले चंद्रशेखर ने मुलायम सिंह से कहा था, 'मेरी अगुवाई कांग्रेसियों को कभी पसंद नही आएगी साथ ही मेरे पास लोकसभा में वह अंकगणित भी नहीं है कि नेतृत्व का दावा कर सकूं . इसलिए अगर तीसरे विकल्प में मुझे बाहर रखकर बात नहीं की गई तो तीसरा विकल्प बनेगा ही नहीं'. मुलायम सिंह के लिए उनकी सलाह थी कि वे चाहें तो दूसरे स्थान के लिए अपना दावा पेश कर सकते हैं पर भविष्य में यदि कभी गुंजाइश बनती है तो उन्हें प्रधानपद के लिए संख्याबल के आधार पर तैयारी करनी चाहिए. यानी स्थितियां ऐसी बनाओ कि तुम्हारे बिना सरकार न बन पाए. सोलह बरस बाद मुलायम सिंह को पता है कि अब वह समय आ गया है कि 2014 में उन्हें अपना कद इतना मजबूत कर लेना चाहिए कि कृष्ण मेनन मार्ग से सात रेस कोर्स का रास्ता सुगम बन सके.
कोलकाता में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दूसरे दिन मुलायम ने ममता बनर्जी की नाराजगी दूर करने की भी कोशिश की। यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ममता से मुलाकात की। गौरतलब है कि राष्ट्रपति चुनाव से पहले ममता बनर्जी का साथ छोड़कर मुलायम कांग्रेस के पाले में चले गए थे। इससे ममता नाराज थीं। उन्होंने कहा कि ममता मेरी छोटी बहन की तरह हैं और उनसे कभी कड़वाहट नहीं रही। केंद्र में सत्ताधारी कांग्रेस और बीजेपी को दुविधाग्रस्त व असफल करार देते हुए मुलायम ने कहा कि समाजवादी पार्टी पर जनता को यकीन है। अखिलेश यादव हाल ही में मध्य प्रदेश का दौरा करने के बहाने यहां भी अपनी जमीन तलाश गये हैं.....दरअसल, उत्तर प्रदेश पर अपना जादू दिखाने के बाद उमर दराज हो चुके मुल्ला मुलायम सिंह यादव की नजरें दिल्ली के तख्त पर जा टिकी हैं।उत्तर प्रदेश के बाद अब मुलायम तीसरा मोर्चा के जरिए खुद प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं।पर सवाल है कि क्या अकेले उप्र की जीत के आधार पर मुलायम 7 रेस कोर्स का सपना पूरा हो सकता है...मान भी लिया जाये कि उप्र में लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटे एसपी जीत भी जाये तब भी क्या अकेले उप्र की लोकसभा सीटों के आधार पर उनकी लंबी कूद दिल्ली तक हो पायेगी....गठबंधन और क्षेत्रीय उभार की राजनीति में इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि 2014 के आम चुनावों के परिणाम कुछ ऐसी परिस्थितियां सामने लाएं कि तमाम क्षेत्रीय दल मिलकर एक बार फिर साझा प्रधानमंत्री चुनें और ऐसे प्रधानमंत्री की मांग उठे जो गैर भाजपाई, गैर कांग्रेसी हो. ऐसा नहीं कि यह पहली बार होगा पर तब स्वार्थ, कथित सिद्धांत और सियासी जोड़ जुगत का जो माहौल बनेगा वह पहले से बहुत अलग होगा.1996 में कांग्रेस के नेताओं का जब पीवी नरसिम्हा राव से मोहभंग का लाभ लेते हुए शरद पवार ने स्वर्गीय चंद्रशेखर के साथ गैर कांग्रेसी नेताओं, समाजवादियों, लोहियावादियों और कतिपय वामपंथियों को लेकर एक विकल्प बनाने का प्रयास किया. इसमें मुलायम सिंह की केंद्रीय भूमिका थी. बात यह तय हुई कि नए विकल्प में चंद्रशेखर नेता होगें, मुलायम सिंह और शरद पवार दूसरे नंबर की जिम्मेदारी संभालेंगे. इस विकल्प के बिखरने से पहले चंद्रशेखर ने मुलायम सिंह से कहा था, 'मेरी अगुवाई कांग्रेसियों को कभी पसंद नही आएगी साथ ही मेरे पास लोकसभा में वह अंकगणित भी नहीं है कि नेतृत्व का दावा कर सकूं . इसलिए अगर तीसरे विकल्प में मुझे बाहर रखकर बात नहीं की गई तो तीसरा विकल्प बनेगा ही नहीं'. मुलायम सिंह के लिए उनकी सलाह थी कि वे चाहें तो दूसरे स्थान के लिए अपना दावा पेश कर सकते हैं पर भविष्य में यदि कभी गुंजाइश बनती है तो उन्हें प्रधानपद के लिए संख्याबल के आधार पर तैयारी करनी चाहिए. यानी स्थितियां ऐसी बनाओ कि तुम्हारे बिना सरकार न बन पाए. सोलह बरस बाद मुलायम सिंह को पता है कि अब वह समय आ गया है कि 2014 में उन्हें अपना कद इतना मजबूत कर लेना चाहिए कि कृष्ण मेनन मार्ग से सात रेस कोर्स का रास्ता सुगम बन सके.
What's up, I check your blog like every week. Your story-telling
ReplyDeletestyle is witty, keep up the good work!
thx a lot for your blessings, but why name is hidden ?
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