75 एमएम पर्दे पर उतरने वाली हर कहानी में प्यार को कोई ना कोई हिस्सा जरूर होता है।
कभी कोई कहानी महज़ कुछ घंटों तक अपना असर रखती है तो कुछ कहानियों को देखकर लगता है
कि सारी जिंदगी ऐसी ही किसी कहानी के आसपास अलाव की हल्की आंच को सेंकते हुए काट ली जाए। प्यार का होना उतना जरूरी नहीं है जितना
प्यार को बचाए रखना। 96 एक ऐसी ही कहानी जिसे गुनगुनाने का ख़्याल फ़िल्म के हर बढ़ते
हिस्से के साथ आपके ज़ह्न को उन रूमानियत में ले जाता है जहां आप खुद को रामचंद्रन
और जानकी देवी के साथ खड़ा पाते हैं। फिल्म की शुरूआत भले ही एक अनजान सफर के साथ शुरू
होती हो लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढती है प्यार का ख़ुमार और भी चढ़ता है। रामचंद्रन
और जानकी देवी के कक्षा दसवीं से शुरू होते इस प्यार में आपको आपकी भी 10वी कक्षा में
गणित या हिन्दी की क्लास के दौरान बैंच पर लखी गई कई कहानियां याद आ जायेगी। रामचंद्रन (विजय सेतुपति) और जानकी देवी (त्रिशा
कृष्णन) के बीच के बीच कैमस्ट्री दिल के किसी अंधेरे कोने में दबी यादों को आंखों के
सामने लेकर आ जाती है। कहानी एकदम नई है। प्यार की आम कहानियों की तरह इस फिल्म में
संडाध नहीं है। स्कूल के पहले प्यार की खुशबू
को जिंदा रखे हुए रामचंद्रन जब 22 साल बाद जानकी देवी से मिलता है तो उसकी घबराघट देखते
बनती है। पूरी फिल्म में विजय सेतुपति की घबराहट से पहली नज़र का प्यार होने से ख़ुद
को कोई नहीं रोक पायेगा।पूरी फिल्म में त्रिशा कृष्णन जिस तरह से अपने चेहरे के भावों
से सारी बात कही है वह देखते बनती है। और हां अगर फिल्म देख रहे हैं तो गौरी किशन
(कक्षा 10 की जानकी देवी) को नोटिस करना ना भूलिएगा, गौरी किशन की एक्टिंग दोनों स्थापित कलाकारों विजय सेतुपति
और त्रिशा कृष्णन पर भारी पड़ती है।उनके अलावा इस फिल्म में फहाद फासिल, राम्या कृष्णन, समांथा
रुथ और मिस्किन ने अपनी-अपनी भूमिकाओं को पूरी
इमानदारी के साथ निभाया है। कहानी के अंतिम हिस्से में आपको यकीन हो जायेगा कि प्यार
कविताओं, चिठ्टियों और किस्सों में बंधकर रह जाने का ही नाम नहीं
है। निर्देशक सी प्रेम कुमार ने बिना किसी लाग लपेट के कलाकारों से काम लिया है काबिले
तारीफ है। उन्होंने बिना किन्ही शब्दों के यह बात साबित की है आंखे बोलती हैं। रिव्यू
के हिसाब से फिल्म को 8/10 तो मिलने ही चाहिए।
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