Tuesday, August 14, 2012


पिछल
दिनों एक ब्लाग पर एक लेख मिला आप लोगो के साथ बांटने का मन हुआ साथ में
लिंक संलग्न है,विषय इतना गंभीर है कि आप सुधी पाठकों के विचार जरूर व्यक्त
होना
जन्मभूमि जननी
और स्वर्ग से महान है। मेरा देश- मेरी धरती मेरी मां है... फिर राष्ट्रपिता
और राष्ट्रपति जैसे शब्दों का क्या मायना है? अगर मां कहलाने वाली हमारी
मातृभूमि का अस्तित्व प्राकृतिक, भौगोलिक और सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से
युगों से कायम है तो क्या हर पांच साल में नया पति (राष्ट्रपति) और कथाकथित
आजादी के बाद पिता (राष्ट्रपिता) का क्या औचित्य और इसकी क्या जरूरत... वह
भी उस स्थिति में जब प्रेसीडेंट के अनुवाद में राष्ट्राध्यक्ष और आधुनिक
भारत के संदर्भ में आधुनिक राष्ट्र के मूलाधार, कर्णधार, शिल्पकार जैसे
शब्द मौजूद हैं...
घोटालों, निराशा और आमजन की कीमत पर हो रही राजनीति (इसे सत्ता और शक्ति के
लिए गिरोहबाजों की जंग कहें तो ज्यादा बेहतर) के घटाटोप अंधेर में...
आधुनिक आजादी के उत्सव की पूर्वसंध्या पर मेरे मन में एक ऐसा सवाल उफन रहा
है शायद जिसका जवाब आजाद होने से अब तक या तो मांग नहीं गया है या किसी ने
सवाल उठाने की जुर्रत नहीं की है...
देश के चाहे जिस व्यक्ति, दल या तबके को यह शब्द मंजूर हों, लेकिन मेरा
मानना है कि मुझे अभी इन शब्दों से आजाद होना बाकी है और उसके बाद गिरोहबाज
राजनेताओं से... शायद तब सच्ची आजादी प्राप्त हो जाए..

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