इंटरनेट के
इस दौर में जहां एक तरफ सारी दुनिया ग्लोबल हो गई है......वहीं विश्व को एक नये
तरह के आतंकवाद से सामना करना पड रहा
है....एक छोटे से मैसेज से शुरू हई बात कब दंगों में तब्दील हो जाती है पता ही
नहीं चलता................अंतरजाल के इस युग में दिनों बढ़ता जा रहा है भाषा का
आतंक
बिना सोचे समझे या फिर कभी कभी सोच समझकर सोशल साइट
में कुछ ऐसी बातें शेयर कर दी जाती है जिनका नतीजा बुरा ही होता है........किसी
बात के विरोध से लेकर सांप्रदायिक दंगे तक
भडका देने वाली ये बातें अब आम आदमी के हाथों में छोटे से मोबाइल से ही हो जाती
हैं...संसद में हराम जादों और राम
जादों से लेकर शिव की मूर्ति पर पैर रखे किसी अजनबी तक ...या फिर देश के
प्रधानमंत्री के फेंकू से लेकर राहुल के गांधी के पप्पू हो जाने तक ......सोशल साइट पर भाषा का आतंकवाद गहराता
जा रहा है......योगी आदित्यनाथ के बयानों से लेकर पीके विरोध तक ......सोशल साइट
पर भाषा का जहर खूब फैलाया जा रहा है.......हर रोज हर समय किसी ना किसी मुद्दे पर
कोई ना कोई गलत मैसेज शेयर करता ही रहता है..........ताजा तरीन मामले अगर पीके की बात
करें तो फिल्म की रिलीज के हफ्ते बाद व्हाट्स एप पर एक मैसेज शेयर किया जा रहा है
जिसमें फिल्म पर हिंदू देवी देवताओं पर विवादित डायलॉग की बाद कही ....मैसेजिंग एप
पर वायरल हो चुके इस मैसेज ने तकरीबन एक हफ्ते बाद पीके विरोध में कई दलों को
सडकों पर उतार दिया कई जगहों पर तोड फोड की गई तो कई सिनेमाघरों में आगजनी तक
घटनाएं सामने आ रही हैं........जब व्हाट्स एप और फेसबुक जैसे माध्यम नहीं थे........तब अफ़वाहें
फैलाने या अनर्गल प्रचार द्वारा लोगों को बहकाने में समय लगता था......अब सोशल
मीडिया इंटरनेट फोरम या चैट रूम जैसी सुविधाओं के चलते हर उल्टी-सीधी बात का प्रचार करना नए सदस्य या समर्थक जुटाना बाएं
हाथ का काम हो गया है...... UNODC की रिपोर्ट में फ़ेसबुक के साथ-साथ ट्विटर, यूट्यूब और फाइल-शेयरिंग सेवा ‘रैपिडशेयर’ को
भी आड़े हाथों लिया गया है...... रिपोर्ट इस बात की भी आलोचना की गई है कि इंरटरनेट
सर्च मशीनों के इंडेक्स ‘आतंकवादी
विषय-वस्तुओं’ की खोज को और भी आसान बना
देते हैं....... संयुक्त राष्ट्र के इस अपराध निरोधक कार्यालय ने
सुझाव दिया है कि स्काइप और उसके जैसे 'इंस्टेंट
मैसेज और वॉइस-ओवर-आईपी प्रदान करने वालों
को चाहिए कि वे इन बातचीत के प्रोटोकोल को रिकॉर्ड किया करें.......ताकि आतंकवादी
गतिविधियों की भनक रहे और आतंकवादियों का इंटरनेट में पीछा किया जा सके...... ऐसा
नहीं है कि वैश्विक स्तर पर ही इस भाषाई आंतकवाद पर नकेल कसने की तैयारी हो रही
है.......देश में राज्य सभा में इस पर कई बार सवाल उठाये गये हैं......राज्यसभा
सांसद मुनव्वर सलीम ने बकायादा इस पर सरकार का ध्यान खींचा है......उन्होनें उच्च
सदन पर इस पूरे मामले में कई बार प्रश्न भी उठाये और बकायदा सरकार से इस भाषाई
आंतकवाद को रोकने के लिए कानून बनाने की बात भी कही.... अब भले ही कुछ लोग कहें कि यह सब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है...लेकिन भले ही
इस प्रश्न का उत्तर उनके पास भी नहीं है कि वरीयता लोगों की जीवन-रक्षा को मिलनी
चाहिए या कुछ बड़बोलों को अपनी मनमानी कहने-सुनने की।अपनी पाशविक विचारधारा को
प्रचार देने और अपनी कुत्सित योजनाओं को साकार करने का उनसे सहज व सस्ता उपाय
उन्हें शायद ही कोई मिल सकता है।
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