Thursday, March 26, 2020

हिमालय के पैरों में चांदी की पाजेब -धर्मशाला

यहां की वादियों में हवाओं का पैगाम है, ठीक इसी जगह पर आकर धरती आसमान से अपने इश्क का इज़हार करती मिल जाती है। इस धरती पर स्वर्ग सिर्फ क़श्मीर में ही नहीं मिलता,धर्मशाला आकर भी आपको पहाडों से इश्क हुए बिना नहीं रहा जायेगा। पिछले कई महीनों से हिमाचल से दोस्त संदीप रोज़ाना ही फोन करके धर्मशाला आने का न्यौता दे रहे थे। जो इस बार दिवाली की छुट्टियां धर्मशाला में ही खर्च करने का फैसला ले लिया गया। हल्की ठंड ने अपनी दस्तक देनी शुरू कर दी थी और इस ठंड को साथ लेकर मैं धर्मशाला की ओर  
चल पडा।
धर्मशाला जाने के लिए तीन रास्ते हैं एक दिल्ली से सीधा फ्लाइट से कांगडा एयर


पोर्ट पर जो कि धर्मशाला से महज़ कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है। और दूसरा दिल्ली से पठानकोठ तक रेल से फिर वहां से बस से दो से तीन घंटे का सफ़र धर्मशाला तक का। और तीसरा दिल्ली से लक्जरी एसी बस से सीधा धर्माशाला तक। हालांकि यहां पर पठानकोट से धर्मशाला तक का सफ़र टैक्सी से भी किया जा सकता है। मैंने रेल के सफ़र का ऑप्शन चुना। दिल्ली से मालवा एक्सप्रेस में पठानकोट तक सफ़र तय किया। पठानकोट से धर्मशाला  के लिए जाते वक़्त जो सबसे पहला अहसास आपको खिडकी के दूसरी तरफ दिखता है उसे सही मायनों में इश्क हो जाने की शुरूवात मान सकते हैं। ख़ूबसूरत वादियों के बीच तेढे-मेढे़ रास्ते से गुज़रती गाडी आपकी सारी थकान उतारने के लिए काफी है। इन ख़ूबसूरत वादियों के बीच कहीं-कही आपको अटखेलियां करती नदी का साथ भी मिलता है। इन वादियों से आने वाली ठंडी हवाओं का झोंका आपकी सारी थकान उतार देने के लिए काफी है। सफ़र की
थकान तो इन वादियों ने लगभग ख़त्म ही कर दी थी। रही सही कसर धर्मशाला पहुंचते ही ना कहां गायब हो गई। दूर हल्की बर्फ से ढंकी वादियां ऐसा लग रहा था मानों किसी ने धौंलाधर की इन पहाडी के गले में मोतियों की माला बांध दी हो। बस स्टैंड पर संदीप मेरा
इंतजार कर रहा था। उसके पास बाकी के दो दिनों का सारा प्रोग्राम तय था। शाम को नहा
धोकर हम दोनों ने दूर धर्मशाला के क्रिकेट स्टेडियम को देखने के लिए निकल पडे। देश में सबसे ऊंचाई बने इस ख़ूबसूरत स्टेडिम की भव्यता देखते बनती है। दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे सफेद बर्फ की चादरों के बीच हरी मखमली घास का बिछौना। और इसी कारण से इसे देश का सबसे ख़ूबसूरत स्टेडियम का दर्जा मिला हुआ है। ख़ूबसूरत रंगों से रंगे इस

क्रिकेट स्टेडियम की ख़ूबसूरत देखते ही बनती है। देश शाम बाद खाने के लिए हम लोग शहर के सिटी सेंटर होटल में पहुंचे। सबसे ऊपर रूप टॉप में खुले आसमान के नीचे खाने का लुफ़्त एक अलग ही अनुभव था। यहां से पूरे शहर का जायजा लिया जा सकता है। हिमाचल की लोकल डिश माधरा की खुशबू आपके मुंह में पानी लाने के लिए पर्याप्त है। इसके आलावा आप यहां पर चने की दाल, तेलिया माह और धाम जैसे हिमाचली खाने को भी टेस्ट कर सकते हैं। इन लोकल स्वादिष्ट खाने से भी ज्यादा सुकून देगा आपको बजट में फिट होने वाला यह होटल, अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध यह होटल जितना आलीशान है उतना ही जेब में फिट भी। दूसरे दिन का कार्यक्रम तय था जो हमें ले गया खारोता कैंपपिंग। लेकिन उससे पहले इन्द्रु नाथ के दर्शन को प्राथमिकता मिली। कहा जाता है कि इन्द्रु नाथ धर्मशाला के देवता हैं इसलिए इद क्षेत्र के आसापास किसी भी शुभ कार्य को संपन्न करने से पहले पहला निमंत्रण इन्हें दिया जाता  है और भगवान से कार्य के निर्विघन्न पूर्ण होने की कामना की जाती है। यही जगह से आप पैरा ग्लाइडिंग का भरपूर मजा उठा सकते हैं। एकट्रिप की उडान के लिए यहां 1500 रूपये चार्ज किया जाता है। भगवान इन्द्रु नाथ के दर्शन के बाद हम गए खरोता केंपपिंग। खारोता केंपपिंग शहर से तकरीबन आधे घंटे की चढाई पर है जिसे हमने टैक्सी को किराए पर लेकर पूरा किया। इसकी सबसे ऊंची चोटी पर पहुंच कर जिस सौंदर्य से आपका वास्ता पडता है, उसे ही शायद इश़्क में डूब जाना कहा जाता होगा। दूर पहाडियों से नीचे की तरफ आता पानी आपको घंटों अपने सौंदर्य में बांध के रख सकता है। फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए यहां की दूर-दूर तक फैली वादियों किसी फैंटसी से कमनहीं है। लगभग तीन घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला। कुछ दिनों पहले ही दूर पहाडियों पर बर्फ गिरने के बाद मौसम और भी दिलकश हो चुका था। बर्फ की पतली चादरों से घिरी ये पहाडियां एक मुलायम और सफेद रूई की तरह लग रही थी। इस जगह पर आपको आकर यह अहसास होगा कि आखिर क्यों हिन्दी फिल्मों के सुपर हीरो देव आनंद की झलक के लिए लोग पागल हुआ करते थे। धर्मशाला को और करीब से जानने के लिए आपको शहर के कोतवाली बाजार के कांगडा कला संग्रहालय में जरूर जाना चाहिए। कृष्ण और राधा के प्रेम को समर्पित कांगडा कला के अदभुत उदाहरण आपको यहां देखने को मिल जायेगें। शाम की ठंडी- ठंडी हवाओं ने मौसम को और भी खुशनुमा बना दिया था। दूसरे दिन का मैंक्लोडगंज का कार्यक्रम तय था। धर्मशाला से मैक्लोडगंज जाने के लिए आप टैक्सी या बस दोनों तय कर सकते हैं। धर्मशाला के ठीक पहले आपको सेंट जान्स चर्च है। देवदार और चीड़ के बीच बना यह चर्च बेहद ही खूबसरत तरीके से संवारा गया है। इसी खूबसरती के कारण ही इस चर्च में मेरी कॉम फिल्म के गाने सजना की शूटिंग के लिए ही इसे चुना गया होगा। इसका नाम ब्रिटिशकाल में पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर डोनाल्ड मैक्लोड के नाम पर पड़ा यह धर्मशाला से तकरीबन 10 किमी की उंचाई पर बसा है। इसे मिनी ल्हासा भी कहा जाता है। अपनी सुंदरता के लिए मशहूर मैंक्लोडगंज पर्यटकों का सबसे पसंदीदा डेस्टिनेशन है। तिब्बती धर्म गुरू दलाई लामा यहीं रहते हैं। चारों तरफ बौद्ध भिक्षुओं से घिरी यह जगह अपनी तिब्बती संस्कृति और कला के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां के स्थानीय बाजार से आप तिब्बती हस्तशिल्प से लेकर घर की साज-सज्जा के लिए कई तरह के तिब्बती समानों की खरीदादरी कर सकते हैं बस आपको मोल-भाव करना आना चाहिए। थांगका यहा की एक स्थानीय तिब्बती सिल्क पेंटिंग है जिसे खरीदे बिना आप खुद को रोक नहीं सकते। इसके आलावा पश्मीना शाल और कारपेट के भी कई डिजाइन यहां आसानी से मिल जायेगें। यहां से तकरीबन डेढ किमी की दूरी पर धर्मकोट जिसे मिनी इजाराइल कहा जाता है देखने लायक
एक और जगह है। धर्मशाला में आप तिब्बत किचन में खाना जरूर ट्राई करें। बेहद ही स्वादिष्ट और ठेढ हिमाचली खाना आपको यहां मिलेगा। पूरा दिन मैंक्लोडगंज में कैसे बीत गया पता ही नहीं। इसके आलावा आप धर्मशाला में भाग्सू नाग मंदिर और झरना, त्रिऊँड ट्रेक, नड्डी, डल झील, गालू मंदिर, हिमालयन वॉटर फाल, सेंट जोन्स चर्च, मोनेस्ट्री और माल रोड है। और हां अगर यहां आये हैं तो दलाई लामा के दर्शन जरूर करें। सुबह उनकी प्रार्थना में कोई आसानी जाकर उनके प्रवचन सुन सकता है और उनके दर्शन कर सकता है। यह धर्मशाला की ही हसीन वादियां है जो आपको दोबारा आवाज देती हैं। दिन कम थे लेकिन दिल अभी भी नहीं भरा फिर लौटेंगे धर्मशाला।

No comments:

Post a Comment