Monday, December 3, 2012

मुर्दों का शहर हो गया भोपाल एक दिन


तेग मुंसिफ हो जहां दारो रसन हो शाहिद
बेगुनाह कौन है इस शहर में कातिल के सिवा.....?

एक तरफ आंसूओं से डबडबाई आंखे......पिछले सालों के जख्मों को महसूस कर रही होगीं....तो दूसरी तरफ सत्तासीन कहीं दूर जश्न मे डूबे तमाम लोग........ये दो चेहरे हैं एक हैं अपने हक के लिए लड़ रहे उन मासूम लोगों का जिन्होनें अपने जीवन का सब कुछ लुटा दिया है....दूसरा चेहरा है....उन सफेदपोशों का जिन्होनें पहले भी कोर्ट के फैसले को लेकर हाय तौबा की थी............कुछ महीने ही बीतें है लेकिन अब इन सफेदपोशों के लिए हजारों लोगों के आंसूओं का मोल शायद ही कुछ बचा हो.....कभी राज्य और कभी केंद्र के पालों के बीच झूलते ये बेबस ना जाने कितनी बार छले गये हैं....इनके लिए आज वो रात उतनी भयावह और डरावनी नहीं जितनी कि इन नेताओ की बातें हैं.......
हर साल भोपाल गैस त्रासदी के नाम पर हो रहे पाखंड के बीच फंसी जनता को इंतजार है तो इस बात का कि आखिर कब उन्हें सही न्याय मिल पायेगा...जिन लोगों को मुआवजा मिला और जितना मिला यदि प्रति व्यक्ति हिसाब लगाया जाया तो मौत के इस तांडव की कीमत महज ५ रू दिन है......ये मलहम है उन हुक्मरानों का जिन्होंनें इन अभागे जिंदा बच गये लोगों की कीमत लगाई......।शुरूआती समय में यह राशि तय की गई थी महज कुछ हजार जानों औऱ लाखों के घायलों के लिए जिसे बांटा गया कई गुना ज्यादा लोगों के बीच। पर हालात अब भी नहीं बदलें हैं.....लोगों के बीच अपनों को खोने का दुख आज भी उतना ही ताजा है......आज भी लोग जब उन गलियों से गुजरते हैं तो बिछडों की यादे बरवस ही उन्हें रूला जाती हैं.....यह भोपाल की बिडंवना है कि भोपाल गैस कांड की बरसी पर प्रदेश के तमाम जिम्मेदाराना लोग दूर कहीं....सफेदपोशों के माफिख जी हुजूरी में लगें होगे.......कोई मातहत को खुश करने प्लेट लिये दौडा जा रहा होगा तो कोई.....किसी के लिए शरबत का इंतजाम करने की भागमभागम में लगा होगा.....ये वही लोग हैं जो कुछ दिन पहले ही भोपाल गैस कांड पर आये फैसले को न्याय की बलिवेदी पर इन मरहूम आत्माओं की आत्महत्या मान रहे थे....और आज जब भोपाल में तमाम जिंदा और चलती फिरती लाशें अपनो को याद कर रही होगीं.....तो ये नदारत होगें....।27 सालों का दर्द आज भी इनके सीने में उसी रफ्तार से दौड रहा है ....यह अलग बात है कि इन सवा पांच लाख लोगो का दर्द सरकार और उनके हुक्मरानो के लिए महज एक मंहगी दुर्घटना के बदले मे निकले धुँए के आलावा और कुछ भी नहीं है...तब से लेकर अब तक देश में आठ बार प्रधानमंत्री की कुर्सी बदली, मध्य प्रदेश में आठ नए मुख्यमंत्री बने ......लेकिन फिर भी इन बड़े नेताओं को कभी भी यह नहीं लगा कि भोपाल में जो घोर अन्याय हुआ है, उसका प्रायश्चित होना चाहिए....। आज इस नरक यात्रा की 28 वी वर्षगांठ है....और एक बार इन नरक यात्री के साथ है तो केवल उनके प्रियजनों की यादें और उनके आंसू....और एक बार फिर खत्म ना होने वाला लंबा इतंजार......ठीक इसी वक्त बाबा धरणीधर याद आते हैं..."...
हर जिस्म जहर हो गया एक दिन
मुर्दों का शहर हो गया भोपाल एक दिन
फर्क था न लाश को जात पांत का 
नस्ल रंग आज सब साथ साथ था
हिंदू का हाथ थामते मुस्लिम का हाथ था 
जां जहाँ था मौत के हाथ था...
हर जर्रा शरर हो गया भोपाल एक दिन
मुर्दों का शहर हो गया भोपाल एक दिन।

No comments:

Post a Comment